रू-ब-रू

रूह-ए-मौसिक को फिर से जगाया जाए,
इस सुहानी धूप में फिर से नहाया जाए,
क्या कुछ नही बोलेगा हर मंज़र मेरे दोस्त,
गर अपनी सदा को ख़ामोशी से सुनाया जाए.

चुन -2 के धूप के टुकड़ों को फिर संजोया जाए,
खुर-द से फ़लख पर हँसी का बीज फिर बोया जाए,
रह सकेगी सुबह कैसे दूर आख़िर रोशनी से,
हर चमकते चाँद को आज फिर से खोया जाए.

बेकरारी और सबब दिल से बहाया जाए,
ग़म के चश्मों को अकेला सूरज दिखाया जाए,
है कहाँ खुदाई कहो हँस के जीने के बिना,
तमन्नाओं का पुलिंदा आज फिर सजाया जाए.

सख़्त दिल को आज नर्म बूँदों से धोया जाए,
ज़ख़्म-ए-दिल को आज तबस्सुं में डुबोया जाए,
गोया की ज़िंदगी का मक़सद नही पाएँगे यूँ,
फिर भी क्यूं कर ज़िंदगी को काँटा चुभोया जाए?

रह गया जो दूर, उस सोज़-ए-ख़ुश को पुकारा जाए,
बह गया जो सुरूर फिर दिल में उभरा जाए,
रेत नही पानी बन के बह जो जाओ तुम कभी,
क्यूँ कभी रुकने का फिर ढूँढा सहारा जाए?

1 comment:

Unknown said...

उर्दू समझना मुश्किल है| कृपया हिंदी में ही लिखें|