गुम गए बीते वो लम्हे, यादों के पिटारे से,
धुंध में लिपटे हुए थे, ख्वाब कुछ प्यारे से,
जब न ढूँढा था उन्हें, जब थी गुम इक दौड़ में,
जब थी खो चुकी ज़िन्दगी, न जाने किस होड़ में,
तब नही सोचा की मुड के देखना भी रीत है,
आगे ही साज़ नही , पीछे भी जुड़े कुछ गीत हैं,
जिस्म तो है आ गया, रूह कहाँ छूट गई?
गाते गाते ये अचानक लय कहाँ टूट गई?
आज अपनी ही धुनें, क्यूँ परायी हो गयीं?
आज अपने आईने से क्यूँ लडाई हो गई?
कहाँ जाऊं? किससे पूछूं? कौन ये बतलायेगा?
शायद यह सवालों का लम्हा भी यूँही खो जाएगा |