अभिलाषा

जिस पथ पर कांटें मिलें , उस पथ पर चलना चाहती हूँ,
दर्द भरे चुभते घावों पर प्यार को मलना चाहती हूँ |

जिस दिशा रुदन सुनाई दे, उस दिशा को मुड़ना चाहती हूँ,
आंसुओं को मुस्कान बना कर, दिलों से जुड़ना चाहती हूँ |

जो धरा है बंध्या हुई, उस धरा पर जीना चाहती हूँ,
सूनी कोख को अमृत से सींच, ख़ुशी को पीना चाहती हूँ |

जिन नैनों में पड़ा हो सूखा, उनमें रहना चाहती हूँ,
प्रेम के आँसू बन पल पल , ह्रदय से बहना चाहती हूँ |

जिधर सूरज अस्त हुआ हो, उधर मैं जलना चाहती हूँ,
आशा का एक लघु दीपक बन, हर दिल में पलना चाहती हूँ |