हे मेघ आज गरज़ो बरसो !

हे मेघ, आज गरज़ो, बरसो,
किसी संवेदना की याद रख,
आज न तरसाओ और न तरसो,
हे मेघ आज गरज़ो बरसो !

तप उठी है वसुधा दिल में लिए अंगार,
ख़त्म ना होता ज्वार,
भीषण वेदना का उदगार,
भूमि के जीवन का तुम आज करो उद्धार,
तृप्ति की एक बूँद को तरसी, बीत गाये बरसों!!!

हे मेघ, आज गरज़ो, बरसो,
किसी संवेदना की याद रख,
आज ना तरसाओ और ना तरसो,
हे मेघ आज गरज़ो बरसो !

हर नेत्र है व्याकुल, भूखा मन, भूखा है पेट,
सूखें अधरों पर एक ममता की बूँद दे दो भेट,
देखो युवा हुआ वृद्ध, गया चिता पर लेट,
वही धरा विदरूप हुई जो सुवर्ण थी कल परसों,

हे मेघ, आज गरज़ो, बरसो,
किसी संवेदना की याद रख,
आज ना तरसाओ और ना तरसो,
हे मेघ आज गरज़ो बरसो !

तुम ना बरसाओ नयन-नीर, आश्रू तो अपार हैं यहाँ,
तुम ना बरसाओ रक्त, हरसू रक्त की तो धार है यहाँ.
हर बात पर रोने-रूलाने वालों का तो अंबार है यहाँ,
यहाँ नही बस प्रेम, प्रेम की वह लहराती सरसों,

हे मेघ, आज गरज़ो, बरसो,
किसी संवेदना की याद रख,
आज ना तरसाओ और ना तरसो,
हे मेघ आज गरज़ो बरसो !