हे मित्र तुम क्यों रोते हो?

हे मित्र तुम क्यूं रोते हो?
क्यों माया की भूल-भुलैया में खोते हो?
क्यों आखें खुली रख कर भी सोते हो?

क्यों व्यथित हो कोई मित्र नही तुम्हारा?
क्या हुआ जो छूट गया कोई भी साथ प्यारा?
जान लो, है एक परम मित्र सदा ही संग,
लुटा रहा है वह तो, मित्रता के कितने प्यारे रंग !

देखो चारों ओर से सरसराती हवाएं,
अधीर हैं कब तुम्हारे बालों को सहलाएं,
उछलती, कूदती, गाती गुनगुनती कह रही हैं -
'आओ हम तुम उमड़ उमड़ कर झूमें, नाचें गायें। !'

खिलखिलाते रंग-बिरंगे कली कुसुम,
तुम्हारी आभा को देख कहते-'कितने प्यारे हो तुम !',
तुम्हारे रंगों में हम अपने रंग मिलाएं,
आओ खुशबू से सारा जीवन भर जायें !'

देखो तुम्हारे कोमल नैनों को सुख देने,
हरे भरे हो कर बैठे हैं वृक्ष-समुदाय,
कहते हैं - ' आओ मित्र, यह सुख है अमृत है पियो,
आओ हम तुम मन में हरियाली फैलाएं !

ख़ुशी से आहलादित नदी व झरने,
कहते हैं - ' आओ हमारे संग बहने,
जीवन के किसी मोड़ से ना घबराएं,
आओ हम तुम अविरल हो बहते जाएँ !'

सुमधुर कलरव, ये चिड़ियों का संगीत,
हृदय को रंजित करते, ये प्यारे मीठे गीत,
पुकारते हैं - ' आओ हम तुम हवा में घुल मिल जाएँ,
संगीत की तरंगें बन चाहूं ओर लहराएँ !'

झिलमिलाती रवि-रश्मी हो रही विकल है,
प्रस्फूटित हो तुम्हारे हृदय में जगमगाने,
कहती है - " तमस को आशा का सूरज दिखाएं,
आओ अंधकर से प्रकाश की ओर जाएँ।'

सुनो इन ऊँचे हिम-शिखरों की पुकार,-
'चढ़ आओ हम पर मानेंगे आभार,
तुम्हारी इच्छाशक्ति में, हमारी दृढ़ता को मिलाएं,
आओ हम तुम उत्थान की दिशा को जाएँ।'

सुनो रात्रि की शांति में हृदय का स्पंदन,
चंद्र के कोमल प्रकाश से भरा है आँगन,
चाँदनी की हर किरण कहती है -
'आओ शांति के सरोवर में नहाएं,
इस ब्रह्म से उस ब्रह्म की ओर जाएँ !'

दूध के धुले हृदय, ये मासूम चेहरे,
इनके मन पर नही किसी के भी पहरे,
सुनो इन चंचल, कोमल नैनों का इशारा -
' आओ हम तुम खेलें, दुनिया को भूल,
अपनी धुन में गुम हो जायें !'

क्या अब भी व्यथित हो, की कोई मित्र नही तुम्हारा?
अपनी आँखें खोलो, देखो, सारा विश्व तो है तुम्हारा !
हर कण तो प्रेम से भरा है !
उस परम मित्र ने तो तुम्हे कभी नही बिसारा !

फिर, हे मित्र तुम क्यों रोते हो?
क्यों माया की भूल-भुलैया में खोते हो?
क्यों आखें खुली रख कर भी सोते हो?