हे मन मेरे हार ना जाना...

युद्ध का बिगुल बज चुका है
मेरा रथ भी सज़ चुका है
तू सारथी है इस रथ का,
मेरे बल को तुझे बढ़ाना.

मोह माया की बस्ती में,
काई भ्रम जालों की छाया है
मोह त्याग कर तुझे है बढ़ना,
जालों में कहीं उलझ ना जाना

पथ में शत्रु हैं आते जाते,
हर शत्रु से लड़ना होगा,
धीरज तुझको धरना होगा,
दुर्बल हो कर डोल न जाना

पथ में दुखों की कालीमा,
अंधकार बन छा जाएगी,
सूर्यास्त के भ्रम में रथ को
रोक न देना, थम न जाना

युद्ध में छोटी सी विजय से,
माना आशा बढ़ जाती है
अति-प्रसन्नता भी विष है पर
लक्ष्य को नही है तुझे भुलाना

युद्ध भूमि पर सब शत्रु हैं
एक तेरा ही साथ मुझे है
मेरे जीवन के अश्वो को,
तुझे है सही दिशा दिखाना

तू हारा तो, हार है मेरी,
तू जीता जो, मेरी विजय है
सदा स्वयं को तुझे जिताना,
हे मन मेरे हार ना जाना,
हे मन मेरे हार ना जाना

1 comment:

उन्मुक्त said...

बड़ी अच्छि कवितायें हैं।