तेरी राह देखूं, तेरी चाह देखूं

हृदय के अंतर में, तेरा रूप देखूं,
बूँद और समुंदर में, तेरी धूप देखूं,

फूलों में कलियों में, तेरा रंग देखूं,
साँसों की गलियों में, तेरी तरंग देखूं,

नदियों में झरनों में, तेरी मस्ती देखूं,
पर्वत की छोटी पे, तेरी हस्ती देखूं,

सूरज में चंदा में, तेरी रोशनी देखूं,
रातों की गहराई में, तेरी शांति देखूं.

सुख में और दुख में, तेरा ही नेम देखूं,
भीड़ में, एकाकी में, तेरा ही प्रेम देखूं.

हर तरफ़ हर जगह पर तू ही तू है छाया,
मेरे कण-कण को तूने ही, प्रेम से सजाया.

तेरे इस सागर में हूँ, उमड़ी- घुसड़ी सी एक लहर,
लौट कर तुझमे समा जाऊं, सोचती मैं वह पहर.

विचलित हो तुझको खोजूं, क्यूं ना तू अपनाता मुझे,
क्यूं किया है ख़ुद से अलग, क्यूं है तू भरमाता मुझे?

तेरी ही एक बूँद हूँ प्यासी, तृप्ति हो कर भी उदासी,
तेरे रूप में मिल जाने की बस में बात देखूं.

तेरी राह देखूं, तेरी चाह देखूं
तेरी राह देखूं, तेरी चाह देखूं

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