कहाँ?

शाम से रात तक, रात से सुबह तक,
दौड़ती साँसों न जाने किधर को चली जाती हैं,
कभी सोचती नही, कभी ठहरती नहीं,
कभी बिगड़ती नहीं, कहीं संवरती नही,
कहीं घूमती नही, कभी विचरती नही,
कहीं खोती नहीं, कभी उभरती नही,
एक लय में बस चली जाती हैं,
कहीं एक ही तरफ़, एक ही दिशा में,
जैसे कोई उनका इंतज़ार करता है...
पर कहाँ?

1 comment:

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

सुन्दर अभिव्यक्ति,है।