मम प्रश्नोत्तर !

जीवन पथ पर जैसे तैसे,
गिरते, उठते, रुकते, चलते,
प्रश्न एक आ गया मचलते-

"क्यों जीवन में दृश्य बदलते?
क्यों है क्षण में भंगुर हर सुख?
क्यों सदैव रहता है कोई दुख?
सुनते रहे सदियों यह बात,
उषा आती हर रात्रि के बाद,
क्यूं नही है उषा ये लंबी?
क्यूं लगती ये इतनी दंभी?
क्यूं हर सुख है पल भर का?
क्यूं हर दुख जीवन भर का?

चलती रही इस प्रश्न को लेकर,
अकसमात ही आया एक उत्तर -

"दुख के बिना नही सुख का मोल,
दुख की महत्ता का अधिक है तोल,
जब तक दुख का ज्ञान नही है,
तब तक सुख का मान नही है,
दुख से ज्ञान यदि ले लोगे,
सुख क्षण में सदियाँ जी लोगे!"

मैने विस्मय से देखा इधर उधर,
कहाँ से आया है ये उत्तर मधुर?
पाया, अंतरमन से आवाज़ है आई,
मन ने मुझमें है शक्ति जगाई,
सुख-दुख की परिभाषा समझाई,
जीवन में नव ज्योति जगाई !

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