जीवन पथ पर जैसे तैसे,
गिरते, उठते, रुकते, चलते,
प्रश्न एक आ गया मचलते-
"क्यों जीवन में दृश्य बदलते?
क्यों है क्षण में भंगुर हर सुख?
क्यों सदैव रहता है कोई दुख?
सुनते रहे सदियों यह बात,
उषा आती हर रात्रि के बाद,
क्यूं नही है उषा ये लंबी?
क्यूं लगती ये इतनी दंभी?
क्यूं हर सुख है पल भर का?
क्यूं हर दुख जीवन भर का?
चलती रही इस प्रश्न को लेकर,
अकसमात ही आया एक उत्तर -
"दुख के बिना नही सुख का मोल,
दुख की महत्ता का अधिक है तोल,
जब तक दुख का ज्ञान नही है,
तब तक सुख का मान नही है,
दुख से ज्ञान यदि ले लोगे,
सुख क्षण में सदियाँ जी लोगे!"
मैने विस्मय से देखा इधर उधर,
कहाँ से आया है ये उत्तर मधुर?
पाया, अंतरमन से आवाज़ है आई,
मन ने मुझमें है शक्ति जगाई,
सुख-दुख की परिभाषा समझाई,
जीवन में नव ज्योति जगाई !
मन ने कुछ कहा, मैने सुन लिया, मन ने चाहा, और मैने लिख दिया, नैनों में मन की कथा - स्मृति, मैं 'मानसी', यह मेरी 'मनस्कृति'!
श्याम कहो तुम क्यूं नही आए?
दिन रात निहारे राह सदा से,
बैठे रहें हम आँख बिछाए,
रात ना बीते, दिन दरस ना दिखाए,
श्याम कहो तुम क्यूं नही आए?
करके वादा भूल गये तुम,
हमको आधा छोड़ गये तुम,
अपना कह के बने पराए,
श्याम कहो तुम क्यूं नही आए?
तुम्हरी रानियाँ, सुंदर काँचन,
हम वृंदावना-गोपी-अश्वेता,
इसलिए हमारा प्रेम दिए भुलाए?
श्याम कहो तुम क्यूं नही आए?
श्याम कहाँ है हृदय तुम्हारा?
क्या कहीं तुम बाँट हो आए?
बरसों रहे तुम हमें सताए,
श्याम कहो तुम क्यूं नही आए?
बैठे रहें हम आँख बिछाए,
रात ना बीते, दिन दरस ना दिखाए,
श्याम कहो तुम क्यूं नही आए?
करके वादा भूल गये तुम,
हमको आधा छोड़ गये तुम,
अपना कह के बने पराए,
श्याम कहो तुम क्यूं नही आए?
तुम्हरी रानियाँ, सुंदर काँचन,
हम वृंदावना-गोपी-अश्वेता,
इसलिए हमारा प्रेम दिए भुलाए?
श्याम कहो तुम क्यूं नही आए?
श्याम कहाँ है हृदय तुम्हारा?
क्या कहीं तुम बाँट हो आए?
बरसों रहे तुम हमें सताए,
श्याम कहो तुम क्यूं नही आए?
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